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Thursday, January 22, 2009

हेडन ने कहा गुडबाय क्रिकेट !


महज सात साल की ग्रेस को शायद अभी भी अपने पापा के काबिलियत पर पूरा भरोसा था, तभी तो यह पूछे जाने पर (हेडन के द्वारा) बेटी लगता है, अब मेरे संन्‍यास लेने का वक्‍त आ गया है। मै अब अपना वक्‍त आप लोगों के साथ गुजारना चाहता हूं। तब ग्रेस का जवाब था, अपने बिल्‍कुल ठीक सोचा है। लेकिन मैं चाहती हूं कि आप अगले क्रिसमस तक खेलते रहें।

हेडन बेशक ग्रेस की इच्‍छा को पूरा कर सकते थे, लेकिन उन्‍होंने ऐसा नहीं किया। शायद उनकी चंद असफलताओं का बोझ इस नन्‍हीं इच्‍छा पर भारी पड़ गया था।

29 अक्‍टूबर 1971 को किंगरॉय,क्‍वींसलैंड में जन्‍में खब्‍बू बल्‍लेबाज मैथ्‍यू हेडन ने अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट में वो हर मुकाम हासिल किया जो हर नये क्रिकेटर का सपना होता है। चाहे टेस्‍ट हो या वनडे हेडन ने बस अपना खेल खेला और रिकार्ड दर रिकार्ड बनते चले गए।

बतौर ओपनर हेडन ने ऑस्‍ट्रेलिया के लिए बड़ी से बड़ी पारियां खेली। ऑस्‍ट्रेलिया को दो बार विश्‍व चैंपियन बनाने में 2003 और 2007 हेडन का महत्‍वपूर्ण योगदान रहा। वनडे में एडम गिलक्रिस्‍ट के साथ तो उनकी जोड़ी वर्ल्‍ड की सबसे तेज तर्रार जोड़ी मानी जाती थी तो, टेस्‍ट में जस्टिन लेंगर के साथ भरोसेमंद।

हेडन के पूरे करियर को आकड़ो में देखें तो वह जितना ज्‍यादा वनडे मैचों में सफल रहें उससे कहीं ज्‍याद टेस्‍ट मैचों में। 103 टेस्‍ट मैच खेल चुके हेडन 184 पारियों में 8625 रन बनाये। टेस्‍ट मैचों में उनका सर्वाधिक स्‍कोर 380 रनों का रहा जो, उन्‍होंने जिंबाब्‍वे के खिलाफ वाका स्‍टेडियम में लगाया। वहीं 161 वनडे मैचों में 6133 रन बनाने में सफल रहे। और इसमें उनका उच्‍चतम स्‍कोर रहा नाट ऑउट 181 रन। टेस्‍ट मैचों में 50 से ज्‍यादा का औसत और वनडे मैचों में 78 से ज्‍यादा का स्‍ट्राइक रेट हेडन की अक्रामक शैली से रूबरू कराता है।

क्रिकेट में उनके अमूल्‍य योगदान और बेहतर खेल के चलते उन्‍हें तरह तरह के अवार्ड से भी नवाजा गया। 2002 में एलन बॉर्डर मेडल,ऑस्‍ट्रेलियन प्‍लेयर ऑफ द ईयर (सर्वश्रेष्‍ठ टेस्‍ट क्रिकेटर) 2003 में विस्‍डन क्रिकेटर ऑफ द ईयर, 2007 में आईसीसी वनडे प्‍लेयर ऑफ द ईयर और 2008 में ऑस्‍ट्रेलियन वनडे प्‍लेयर ऑफ द ईयर। ये तमाम अवार्ड उनके सफल क्रिकेट करियर की कहानी बयां करता है।

लेकिन ये तमाम सफलता कुछ चंद असफलताओं ने हेडन को संन्‍यास लेने पर बाध्‍य कर दिया। यहां तक कि उन्‍होंने अपनी प्‍यारी बेटी की इच्‍छा का भी दमन करने में कोई गुरेज नहीं की। पहले उनका भारत में पूरी तरह फ्लाप होना उसके बाद अपने ही घर में अफ्रीका के खिलाफ न चलना और इन दोनों जगह ऑस्‍ट्रेलियाई टीम की हार को हेडन के असफलता से जोड़ कर देखना जैसे बड़े कारणों के चलते उन्‍हें संन्‍यास लेना ही पड़ा।

वैसे हेडन अपने अंतरराष्‍ट्रीय करियर को इंग्‍लैंड के खिलाफ होने वाले प्रतिष्ठित एशेज सीरीज तक जारी रखना चाहते थे। लेकिन दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टी-ट्वेंटी और वनडे सीरीज से बाहर कर दिए जाने के बाद उन्‍होंने क्रिकेट को अलविदा कहना ही बेहतर समझा। एक दशक तक सलामी बल्‍लेबाजी की रीढ़ रहे हेडन को विषम परिस्थितियों से अपनी टीम को उबारने के लिए हमेशा याद किया जायेगा।

Saturday, December 27, 2008

कहानी छह गेंदों पर छह छक्‍कों की


यह वो रिकॉर्ड है जिसे हासिल करने के सपने हर बल्‍लेबाज देखता है, लेकिन कुछ ही ऐसे हैं, जो वास्‍तव में इसे हासिल कर पाए हैं। 1968 में गैरी सोबर्स से शुरू हुई यह कहानी 2007 में युवराज सिंह तक आकर रुक जाती है।

मुकेश तिवारी

क्रिकेट के मैदान पर लगे चौके और छक्‍के लंबे समय से प्रशंसको का मनोरंजन करते आए हैं। इसमें कोई संदेह न‍हीं कि लंबे हिट्स लगाकर गेंद को बाउंड्री के बाहर भेजना केवल बल्‍लेबाज की आत्‍मसंतुष्टि भर नहीं होती। बल्कि ये वो संतुष्टि होती है, जो मीलों दूर बैठे लाखों लोगों को भी उछलने-कूदने को मजबूर कर देती है। और बात यदि छह गेंदों पर छह छक्‍के लगाने की हो तो क्रिकेट के मैदान पर रोमांच और आक्रामकता का इससे अच्‍छा उदाहरण शायद ही कुछ और हो। लेकिन कम ही ऐसे लोग हैं, जो अब तक ऐसा कर पाने में सफल रहे हैं।


वनडे और टी-ट्वेंटी की बढी लोकप्रियता ने पिछले कुछ सालों में हमें इस लम्‍हे को जीने के मौके जरूर दिए हैं, लेकिन यह कभी नहीं भुलाया जा सकता कि पहली बार यह कारनामा वेस्‍टइंडीज के गैरी सोबर्स ने किया था। 1968 में जब सोबर्स ने मैल्‍कम नाश की छह गेंदों पर छह छक्‍के लगाए थे, तो क्रिकेट के लिए यह एक अनोखी घटना थी।


हालांकि उनके बाद पहले रवि शास्‍त्री ने फर्स्‍ट क्‍लास क्रिकेट और फिर हर्शेल गिब्‍स एवं युवराज सिंह ने अंतरराष्‍ट्रीय मैचों में उनके कारनामे को दुहराया, लेकिन सोबर्स के उन छह छक्‍कों की लोकप्रियता में अभी भी कोई कमी नहीं आई है।


कोई आश्‍चर्य नहीं कि पूर्व इंग्लिश खिलाड़ी डेविड लॉयड ने इन्‍हीं छह छक्‍कों की याद ताजा करते हुए एक किताब लिखी है। 'सिक्‍स ऑफ द बेस्‍ट: क्रिकेट्स मोस्‍ट फेमस ओवर' नाम की इस किताब में लॉयड ने न केवल इस यादगार ओवर की छह गेंदों के बारे में बताया है, बल्कि उस समय मैदान पर मौजूद रहे लोगों से बातचीत कर इसे एक बार फिर से जीने की कोशिश की है।


40 साल पहले वेस्‍टइंडीज के इस धाकड़ बल्‍लेबाज ने मैल्‍कम नाश के एक ओवर में छ: छक्‍के लगाकर तहलका मचा दिया था। उस समय टीवी पर कमेंट्री कर रहे विल्‍फ वूल्‍मर ने कहा था मैदान के बाहर से सोबर्स के उस अक्रामक अंदाज को देखना वा‍कई में अद्भुत था। सोबर्स के बाद यह कारनामा रवि शास्‍त्री ने 1984 में एक रणजी मैच के दौरान कर दिखाया।


शास्‍त्री ने बड़ोदरा के लेफ्ट आर्म स्पिनर तिलकराज के एक ओवर में 36 रन बटोर कर काफी वाहवाही लूटी थी। उनकी लोकप्रियता रातोंरात ही असमान छूने लगी और कुछ समय के लिए ही सही, लेकिन रवि के उन छह छक्‍कों ने सोबर्स की याद को कहीं पीछे छोड़ दिया।


हालांकि, इंटरनेशनल क्रिकेट में पहली बार यह रिकॉर्ड हासिल करने वाले खिलाड़ी हैं दक्षिण अफ्रीका के हर्शेल गिब्‍स, जिन्‍होंने 2007 के विश्‍वकप में नीदरलैंड के डैन वॉन बंज की छह गेंदों पर छह छक्‍के लगाए थे। फटाफट क्रिकेट के नए अवतार 20-20 को इसके लिए ज्‍यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। 2007 में ही खेले गए पहले टी-20 वर्ल्‍ड कप में इंग्‍लैंड के स्‍टुअर्ट ब्रॉड के एक ओवर में छह लगातार छक्‍के लगाकर युवराज ने अपना नाम रिकॉर्ड बुक्‍स में दर्ज करा लिया।

Friday, November 28, 2008

सफलता के नये आयाम गढ़ती टीम इंडिया


भारतीय क्रिकेट टीम इस समय अपने पूरे शबाब पर है। खेल के हर क्षेत्र में वे अपने विपक्षियों पर कहीं ज्‍यादा भारी पड़ रहे हैं। गेंदबाज हो या बल्‍लेबज वे अपने काम को बखूबी अंजाम दे रहे हैं। इन सब के बीच भारतीय टीम में जो जीत की ललक दिख रही है वो कहीं न कहीं भारतीय क्रिकेट टीम के बदलते सुहावने समय का एहसास करा रही है।

मुकेश तिवारी

भारतीय टीम को मौजूदा समय की सबसे सफल टीम कहें तो इसमें कोई बुराई नहीं। इस समय भारतीय टीम धोनी की अगुवई में सफलता के झंडे गाड़ रही है। भारतीय टीम की इस सफलता का राज है एकजुट होकर विपक्षियों को मात देना। और इसका श्रेय जाता है कप्‍तान महेंद्र सिंह धोनी को। मैदान के अंदर धोनी की एक एक रणनीति विपक्षियों पर इस कदर भारी पड़ रही है कि मजबूत होते हुए भी सामने वाली टीम कमजोर नजर आने लगती है।

अगर हम भारत दौर पर आई इंग्‍लैंड क्रिकेट टीम को देखें तो बात साफ हो जाती है। केविन पीटरसन, एंड्रयू फ्लिंटाफ,पॉल कोलिंगवुड और इयान बेल जैसे बल्‍लेबाज इस दौरे पर अपने नाम के अनुरूप प्रदर्शन करने में असफल रहे। वहीं उनके गेंदबाजी अक्रमण में भी वो धार नहीं दिखी जिसके लिए उन्‍हें जाना जाता है।
भारतीय टीम इस सफलता का राज यह भी है कि जो भी खिलाड़ी अंतिम एकादश में शामिल होता है वो उस मैच में अपनी पूरी क्षमता के साथ खेलता है। चाहे बल्‍लेबाज हो या गेंदबाज सब अपनी उपयोगिता को साबित करने में लगे हुए नजर आते हैं। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि भारत के पास मौजूदा समय में अच्‍छे खिलाडि़यों की कमी नहीं है। अगर हम बेंच स्‍ट्रेंथ की बात करें तो उनके पास ऐसे खिलाड़ी हैं जो काफी प्रतिभावान हैं। ऐसे में उन्‍हें पता होता है‍ कि हमने अच्‍छा नहीं किया तो दूसरे किसी को मौका मिल सकता है। लिहाजा टीम में बने रहने के लिए अच्‍छा खेलना ही होगा।
हम भारतीय सफलता की बात करें तो ये बात उभर कर सामने आती है कि इस समय भारत की मौजूदा वनडे टीम काफी मजबूत और सशक्‍त नजर आती है। खास कर जो भारत की सबसे कमजोर पक्ष हुआ करती थी फिल्डिंग वो काफी हद तक मजबूत हो गयी है। रही बात बैटिंग लाइनअप की तो भारत के सामने इसका कोई सानी नहीं। जिसके पास वीरेंद्र सहवाग,सचिन तेंदुलकर और गौतम गंभीर जैसा ओपनर मौजूद हो भला उस टीम के कप्‍तान को और क्‍या चाहिए। रही बात मिडिल आर्डर की तो युवराज सिंह,सुरेश रैना,रोहित शर्मा और खुद कप्‍तान महेंद्र सिंह धोनी जैसे खिलाड़ी शामिल है जो अपने काम को बखूबी अंजाम दे रहे हैं। और पिच हिटर के तौर पर अपने यूसुफ मियां भी किसी से कम नहीं।
बल्‍लेबाज तो अपना काम कर ही रहे है लेकिन गेंदबाज भी इनसे कम नहीं है। जहीर खान की अगुवई में मुनाफ पटेल और ईशांत शर्मा भी अच्‍छा प्रदर्शन कर रहे हैं। रही बात स्पिन डिपार्टमेंट की तो भारतीय टीम के सिंह इज किंग यानी हरभजन सिंह के साथ युवराज सिंह भी अच्‍छी लय में गेंदबाजी कर रहे हैं।

ऑस्‍ट्रेलिया को टेस्‍ट सीरीज में पीटने के बाद भारत ने इंग्‍लैंड को वनडे सीरीज में 5-0 से हराकर ये बता दिया कि आने वाला समय उनका है। दक्षिण अफ्रीका जैसी मजबूत टीम को हराने के बाद भारत आयी इंग्‍लैंड टीम की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। इस पूरी सीरीज के दौरान ऐसा कभी नहीं लगा कि इंग्‍लैंड की टीम मैच को जीतने के लिए मैदान में उतरी है। हालाकि कटक में एक बारगी ऐसा लगा कि इंग्‍लैंड इस मैच को जीतना चाहती है। लेकिन विस्‍फोटक सहवाग ने इंग्‍लैंड के जोश को ठंडा कर दिया।

पिछले कुछ महीनों में गौर करें तो पता चलता है‍ कि भारतीय टीम ने वनडे मुकाबलों में अच्‍छा प्रदर्शन किया है। खास कर ऑस्‍ट्रेलिया और श्रीलंका में भारत ने जिस तरह से खेला वह काबिलेता‍रीफ है। उसके बाद अपने घर में ऑस्‍ट्रेलिया को टेस्‍ट सीरीज में मात देने के बाद इंग्‍लैंड को वनडे सीरीज में एकतरफा 5 मैचों में हराने के बाद टीम इंडिया के हौसले इस समय बुलंदियों पर है। इस हौसले और जीत के जज्‍बे को भारतीय क्रिकेट टीम 2011 वर्ल्‍ड कप तक जरूर कायम रखना चाहेगी।


Sunday, October 12, 2008

हमेशा याद आओगे दादा

भारतीय क्रिकेट टीम का एक चमकता सितारा ऑस्‍ट्रेलिया के खिलाफ हो रहे बॉर्डर गावस्‍कर ट्रॉफी के बाद इंटरनेशनल क्रिकेट को अलविदा कह देगा। इस नायाब हीरे की चमक अब हमे देखने को नहीं मिलेगा। लेकिन ये हीरा हमेशा चमकता रहे हम यही कामना करेंगे।
मुकेश तिवारी
सौरव चंडीदास गांगुली जी हां एक ऐसा नाम जिसने भारतीय क्रिकेट टीम को अपने दमदार कप्‍तानी और खेल से क्‍या कुछ नहीं दिया। आइये गांगुली के कॅ‍रिअर से जुड़े कुछ बेहतरीन लम्‍हों की याद ताजा करते हैं जिसके लिए दादा हमेशा याद आयेंगे।
वर्ष 1996 - लॉर्ड्स का ऐतिहासिक मैदान सौरव को इंग्‍लैंड के खिलाफ दूसरे टेस्‍ट में खेलने का मौका मिला। भारतीय टीम दो जल्‍दी विकेट गवां के संघर्ष करती नजर आ रही थी। उस समय बल्‍लेबाजी करने के लिए आए गांगुली के ऊपर काफी दबाव रहा होगा, एक तो उन्‍हें अपने चयन को साबित करने का, दूसरा टीम को संकट से उबारने का। लेकिन गांगुली ने इस दबाव का बखूबी सामना करते हुए टीम को तो संकट से उबारा ही साथ में अपने पहले ही टेस्‍ट मैच मे शतक लगा कर अपने लिए ही नहीं बल्कि क्रिकेट प्रशंसको के लिए भी उस दिन को यादगार बना दिया।

वर्ष 1999 वर्ल्‍ड कप -श्रीलंका के खिलाफ लीग मैच। टॉटन का स्‍टेडियम दर्शको से खचाखच भरा हुआ था। लंका ने टॉस जीतकर भारत को खेलने के लिए बुलाया। सचिन उस समय मिडिल ऑर्डर में खेल रहे थे लिहाजा ओपनिंग करने के लिए सौरव के साथ आए सदगोपन रमेश चामिंडा वास के शिकार बन चुके थे। शुरूआत मे पिच काफी तेज खेल रही थी। साथ में उछाल भी था। वास, रमेश को ऑउट करने के बाद लय में आने लगे थे। ऐसे में पूरा दारोमदार गांगुली पर आ गया था। वास का पांचवां ओवर था। दो बेहतरीन गेंदो पर गांगुली पूरी तरह बीट हो गए थे। तीसरी गेंद पर एक सनसनाता हुआ कवर ड्राइव। कोई फिल्‍डर जब तक अपना पैर हिलाता गेंद सीमा रेखा को पार कर चुकी थी। उस एक शॉट ने गांगुली के आत्‍मविश्‍वास को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया। और ऑउट होने से पहले दादा 183 रन ठोक चुके थे। वो भी मात्र 158 गेंदो पर। ये सौरव के आत्‍मविश्‍वास को दर्शाती एक बेहतरीन पारी थी।
वर्ष 2002- क्रिकेट का मक्‍का कहे जाने वाले लॉर्ड्स के खूबसूरत मैदान पर इंग्‍लैंड के खिलाफ नेटवेस्‍ट ट्रॉफी का फाइनल मैच। धड़कन को थाम देने वाले इस मैच मे गांगुली बल्‍लेबाजी में कुछ खास नहीं कर पाए थे। खेल आखिरी दो ओवरों मे अपने चरम पर था। मैच किसी के भी पक्ष में जा सकता था। कप्‍तान गांगुली को मैराथन पारी खेल चुके मोहम्‍मद कैफ के ऊपर पूरा भरोसा था। लोगों की सासें थम रही थी। उस समय मेरे यहां लाइट नहीं थी, लिहाजा क्रिकेट के उस रोमांस को मैं रेडियो पर जी रहा था। उस समय सोचो गांगुली का क्‍या हाल रहा होगा। खैर अब जीत के लिए सिर्फ दो रन ही चाहिए थे। मैदान पर कैफ के साथ जहीर खान मौजूद थे। इन दोनों ने जैसे ही दौड़कर दो रन पूरे किए पूरा स्‍टेडियम झूम उठा। मैं भी रेडियो को हाथ मे ही लेकर उछलते हुए खुशी का इजहार कर रहा था। सब अलग अलग तरीके से भारतीय जीत के इस लम्‍हे को यादगार बनाने मे लगे हुए थे। हद तो तब हो गई जब लॉर्ड्स के बालकनी में नंगे बदन टी शर्ट को हवा मे लहराते हुए सौरव भारत के इस जीत को कुछ अलग अंदाज में मना रहे थे। गांगुली का यह अंदाज खेल के प्रति उनके जुनून की कहानी बयां कर रहा था।
वर्ष 2003 -ऑस्‍ट्रेलिया के ब्रिस्‍बेन मैदान में बॉर्डर गावस्‍कर ट्रॉफी के लिए भारतीय टीम एक बार फिर ऑस्‍ट्रेलिया के सामने थी। सौरव को एक अच्‍छे कप्‍तान के तौर पर खुद को साबित करने के अलावा अपने आप को शार्टपिच गेंदो पर भी परखना था। उसके पहले शार्टपिच गेंदो को लेके गांगुली की काफी आलोचना हो चुकी थी। एक और नाकामी उनके बेहतरीन कॅ‍रिअर में बदनुमा दाग लगा देती। लेकिन यहां बंगाल टाइगर के इरादे कुछ और ही थे। बाये हाथ के इस खब्‍बू बल्‍लेबाज ने जेसन गेलेस्‍पी और नाथन ब्रेकन को सलीके से खेलते हुए उनके हर चाल को निस्‍तनाबूत करते हुए बेहतरीन शतक जड़ दिया। ये ब्रिस्‍बेन मे अपने विश्‍वास को जीतते सौरव गांगुली थे।
वर्ष 2007- पाकिस्‍तान के खिलाफ बेंगलूरू में खेला गया तीसरा टेस्‍ट मैच। गांगुली अपने टेस्‍ट कॅरिअर में अभी तक एक भी दोहरा शतक नहीं लगा पाए थे। दादा इस सूखे को शायद चिर प्रतिद्वांदी पाकिस्‍तान के खिलाफ ही खेलकर खत्‍म करना चाहते थे। हुआ भी वही दादा ने दोहरा शतक लगाकर ड्रा हुए इस टेस्‍ट मैच को भी हमेशा के लिए जीवंत बना दिया।
ये तो दादा के कॅरिअर से जुड़े कुछ बेहतरीन लम्‍हे थे। जो हमेशा याद रहेंगे। इसके अलावा दादा ने अपने अक्रामक कप्‍तानी से भारत को विदेशो में भी लड़ना सिखा दिया। 2003 वर्ल्‍ड कप में फाइनल तक का सफर तय करना, ऑस्‍ट्रेलिया में जाकर ऑस्‍ट्रेलियाई खिलाडि़यों के आंखों मे आंखें डालकर सीरीज को ड्रा कराना, पाकिस्‍तान को उसके घर में ही जाकर वनडे व टेस्‍ट में पूरी तरह से धो देना,जैसी कुछ बेहतरीन कामयाबियां दादू के कैरियर में चार चांद लगा देती है।

Wednesday, October 8, 2008

क्‍या बोलते हो बॉर्डर साहब?

ये क्या बोल दिया बॉर्डर साहब। बिना सोचे समझे कह डाला कि भारतीयों ने बूढ़ों की सेना चुन ली है। अरे भइया,आपने हिन्दुस्तानी फिल्म 'वक्त' नहीं देखी न, तभी कह बैठे ऐसा।
उस फिल्म में राजकुमार का डायलॉग था-जानी,जिनके घर शीशे के होते हैं,वो दूसरों के घर पत्थर नहीं फेंका करते। पर,हमारे घर तो शीशे के भी नहीं है,सॉलिड एसीसी सीमेंट के हैं,फिर काहे पत्थर मारा आपने।
आपने कह दिया कि बूढ़ों की सेना को अभी तक सही मायने में संन्‍यास ले लेना चाहिए था। लेकिन, जनाब हमारी टीम में तो सचिन तेंदुलकर,राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्‍मण, सौरव गांगुली और अनिल कुंबले जैसे खिलाड़ी ही हैं, जिनकी उम्र 30 के ऊपर है। लेकिन बॉर्डर साहब आपने शायद यह नहीं देखा कि आपकी टीम में तो आठ खिलाड़ी ऐसे है, जिनकी उम्र 30 के उपर है। (मैथ्‍यू हेडेन,रिकी पोंटिंग,स्‍टुअर्ट क्‍लार्क,ब्रै‍ड हैडिन,माइकल हसी,ब्रूस मैक्‍गेन,साइमन काटिच और ब्रेटली)। भइया, इनकी उम्र 30 के ऊपर है,और इस लिहाज से तो इन खिलाडि़यों को अब तक संन्‍यास ले लेना चाहिए था।

रही बात गांगुली की तो उनकी उम्र मैथ्‍यू हेडेन से 253 दिन कम ही है ज्‍यादा नहीं। और तो और जब आप ब्रूस मैक्‍गेन जैसे खिलाड़ी,जिनकी उम्र 36 साल से भी ऊपर है,को टेस्‍ट डेब्‍यू करा सकते हो तो हम अपने खिलाडि़यों को और मौका नहीं दे सकते हैं क्‍या।सब की तो छोड़ो, जब आप खुद 39 साल की उम्र तक टेस्‍ट क्रिकेट खेल सकते हैं तो दूसरा क्‍यों नहीं खेल सकता भाई।रही बात फैब फाइब के संन्‍यास लेने की तो उन्‍हें भली भांति पता है कि कब क्रिकेट को अ‍‍लविदा कहना है।

बॉर्डर भइया,हमारी तो एक ही सलाह है आपको। वो ये कि बगैर कुछ बोले दो बेहतरीन टीमों के बीच होने वाले टेस्‍ट मैच का लुफ्त ऊठाओ। कौन खिलाड़ी बूढा है, कौन जवान है, इससे हमको आपको क्‍या लेना देना। बाकी आप खुद इतने समझदार है और क्‍या समझाया जाए। खैर अगर बुरा लगे तो गुस्‍ताखी माफ बॉर्डर साहब।

Sunday, September 21, 2008

आखिर क्‍यों माने आईसीएल को अछूत


जी हां श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड ने बागी इंडियन क्रिकेट लीग आईसीएल से जुड़े अपने क्रिकेटरों को घरेलू सीरीज में खेलने की अनुमति दे कर यह संदेश दे दिया है कि वह आ‍ईसीएल को अछूत या बागी नहीं मानता। श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड का यह साहासिक फैसला निश्चित तौर पर अन्‍य क्रिकेट बोर्डो को भी सोचने पर मजबूर करेगा।


मुकेश तिवारी

ऐसा लग रहा था कि एस्‍सेल ग्रुप का ट्वेंटी-20 लीग आईसीएल सफलता के नए आयाम रचेगा और क्रिकेट के सांस थमा देने वाले रोमांच से क्रिकेटप्रेमियों को रुबरु कराएगा। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। लेकिन, बीसीसीआई की बेरूखी से आईसीएल को वैसा माइलेज नहीं मिल पाया, जिसकी उम्‍मीद थी। बीसीसीआई ने अपने किसी भी टूर्नामेंट या मैच में आईसीएल से जुड़े खिलाडि़यों के खेलने पर पाबंदी लगा दी, जो आज तक कायम है।

बीसीसीआई के कटुतापूर्ण रवैये की वजह से आईसीएल को खासा नुकसान झेलना पड़ा। आईसीएल उस नुकसान से उबरने की जी-जान से कोशिश कर रहा है। हालांकि, आईसीएल की शुरुआत आईपीएल से पहले हो गई थी और क्रिकेट के लिहाज से आईसीएल का स्‍तर आईपीएल से कमतर नहीं था। लेकिन, गलैमर और मार्केटिंग में वह पिछड़ गया क्‍योंकि उसके पास सचिन, धोनी, सहवाग, जयसूर्या, युवराज, गिलक्रिस्‍ट, वार्न, गांगुली, द्रविड़ सायमंड्स जैसे बड़े खिलाड़ी और अंबानी, विजय माल्‍या, शाहरुख खान, प्रीटि जिंटा जैसे उद्योगपति और स्‍टार नहीं थे। इस वजह से इसकी चमक फीकी पड़ गई। यहां तक की इससे जुड़े खिलाडि़यों को बीसीसीआई ने बागी तक करार दे दिया। इतना ही नहीं, अपने प्रभाव के दम पर उसने दूसरे देशों के बोर्डों को भी आईसीएल से जुड़े क्रिकेटरों पर कार्रवाई करने को मजबूर कर दिया।

खैर, श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड के अध्‍यक्ष अर्जुन रणतुंगा ने साहस भरा कदम उठाते हुए आईसीएल से जुड़े अपने देश के खिलाडि़यों को घरेलू सीरीजों में खेलने की अनुमति दे दी है। इन खिलाडि़यों में श्रीलंका के पूर्व कप्‍तान मर्वन अटापट्टू ऑलराउंडर रसेल अर्नोल्‍ड और लेग स्पिनर उपुल चंदना जैसे खिलाड़ी शामिल हैं। ये खिलाड़ी आईसीएल की विभिन्‍न टीमों से जुड़े हैं। श्रीलंका के कप्‍तान रहे बेहतरीन टेस्‍ट प्‍लेयर 37 वर्षीय मर्वन अटापट्टू ने तो श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड के इस फैसले को साहासिक फैसला करार देते हुए कहा है कि अन्‍य क्रिकेट बोर्डो को भी इस बात पर विचार-विमर्श कर सकारात्‍मक सोच अपनानी चाहिए। इससे क्रिकेट का भला होगा।

दूसरी तरफ आईसीएल ने भी इसे क्रिकेट की जीत बताया और कहा कि उसे अब आईसीसी से भी सकारात्‍मक जवाब की उम्‍मीद है। वहीं आईसीएल कार्यकारी बोर्ड के सदस्‍य किरण मोरे ने इसे आईसीएल ही नहीं, बल्कि क्रिकेट के लिए एक अहम दिन करार दिया। उनका मानना है कि हम सब भी क्रिकेट ही खेल रहे हैं, कोई गलत काम नहीं कर रहे हैं। मोरे का यह मानना भी गलत नहीं है कि पहले खिलाड़ी काउंटी में खेलने के लिए जाते थे, अब वे आईसीएल या आईपीएल का रूख कर रहे हैं तो इसमें बुरा क्‍या है।

श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड ने आईसीएल को जो खुशी दी है, वह कब तक कायम रहती है, यह आने वाला वक्‍त बताएगा। लेकिन, श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड ने अपने इस फैसले के जरिए बीसीसीआई को साफ तौर पर बता दिया है कि आईसीएल से जुड़े क्रिकेटरों को वह क्रिकेटर ही मानता है, ‘अछूत’ नहीं। बीसीसीआई को श्रीलंका बोर्ड के इस फैसले को सकारात्‍मक रूप में लेते हुए अपने रवैये पर विचार करना चाहिए। इससे क्रिकेट का भला ही होगा।

Friday, September 19, 2008

कायम है सहवाग का खौफ


मोहम्‍मद निसार ट्राफी मैच के तीसरे दिन जिस अक्रामक अंदाज में बल्‍लेबाजी की, वह लाजबाब थी। इस छोटी, लेकिन आक्रामक पारी ने पाकिस्‍तानी खिलाडि़यों की पेशानी पर बल ला दिया था। जब तक सहवाग क्रीज पर थे उनके खौफ को विपक्षी खिलाडि़यों के चेहरों पर साफ पढ़ा जा सकता था।

मुकेश तिवारी
रणजी चैंपियन दिल्‍ली और कायदे आजम ट्रॉफी की विजेता सूई नार्दन गैस पाइपलाइन लिमिटेड के बीच हो रहे मोहम्‍मद निसार ट्राफी के चार दिवसीय मैच की पहली पारी में सहवाग बिना खाता खोले ऑउट हो गये थे। तब उनका महत्‍वपूर्ण विकेट लेने वाले इमरान अली ने कहा था कि मै सहवाग को भी अन्‍य सामान्‍य बल्‍लेबाजों की तरह ही मानता हूं। यह बात शायद सहवाग नामक आग को हवा देने के लिए काफी थी। सहवाग ने दूसरी पारी में 29 गेंदो पर ताबड़तोड़ 37 रन बना डाले जिनमें 6 दनदनाते चौके और एक लाजबाब छक्‍का शामिल था। उन्‍होंने इमरान (वही जो सहवाग को एक आम बल्‍लेबाज बता रहे थे) के एक ओवर मे 3 चौकों की मदद से 15 रन ठोक डाले। तब इमरान को ही नहीं, बल्कि पाकिस्‍तानी टीम को भी यह अहसास हो गया हो गया कि वे एक आम बल्‍लेबाज नहीं हैं। अवार्ड समारोह के दौरान पा‍किस्‍तान टीम के मैनेजर शहादत अली खान की टिप्‍पणी- सहवाग दुनिया के सबसे खतरनाक बल्‍लेबाज हैं- से यह जाहिर भी हो गया।

सहवाग हमेशा से किसी भी गेंदबाज के लिए सबसे बड़ी चुनौती रहे हैं। सामने कोई भी गेंदबाज हो, सहवाग को कोई फर्क नहीं पड़ता, बस वे अपना नेचुरल गेम खेलते हैं, यानी गेंदबाज की कुटाई। शायद इसी लिए उन्‍हें ‘बेखौफ बल्‍लेबाज’ के नाम से पुकारा जाता है। इसका ताजातरीन उदाहरण श्रीलंका में देखने को मिला। अंजता मेंडिस दूसरे भारतीय बल्‍लेबाजों के लिए अबूझ पहेली बने रहे, वहीं सहवाग ने मेंडिस के खिलाफ अक्रामक नीति अख्तियार की और सफल भी हुए। मेंडिस को यह मानना पड़ा कि भारतीय बल्‍लेबाजों में सहवाग को गेंदबाजी करना सबसे ज्‍यादा मुश्किल था। इस बेजोड़ बल्‍लेबाज ने अपने पिछले 11 टेस्‍ट शतकों में 150 के ऊपर रन बनाये हैं, जो अपने-आप में एक रिकार्ड है।

खास कर पाकिस्‍तान के खिलाफ तो सहवाग का बल्‍ला बल्‍ला हमेशा बोला है। मुल्‍तान में पाकिस्‍तान के खिलाफ भारत की तरफ से पहला तिहरा शतक लगाकर सहवाग ने पाकिस्‍तानी खिलाडि़यों को अपने इस बेखौफ बल्‍लेबाजी का नमूना पहले ही दिखा दिया था। निसार ट्रॉफी की दूसरी पारी में सहवाग के ताबड़तोड़ 37 रन शायद पाकिस्‍तानी खिलाडि़यों को पिछली पारियों के मंजर याद दिलाने के लिए थे।