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Sunday, September 21, 2008

आखिर क्‍यों माने आईसीएल को अछूत


जी हां श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड ने बागी इंडियन क्रिकेट लीग आईसीएल से जुड़े अपने क्रिकेटरों को घरेलू सीरीज में खेलने की अनुमति दे कर यह संदेश दे दिया है कि वह आ‍ईसीएल को अछूत या बागी नहीं मानता। श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड का यह साहासिक फैसला निश्चित तौर पर अन्‍य क्रिकेट बोर्डो को भी सोचने पर मजबूर करेगा।


मुकेश तिवारी

ऐसा लग रहा था कि एस्‍सेल ग्रुप का ट्वेंटी-20 लीग आईसीएल सफलता के नए आयाम रचेगा और क्रिकेट के सांस थमा देने वाले रोमांच से क्रिकेटप्रेमियों को रुबरु कराएगा। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। लेकिन, बीसीसीआई की बेरूखी से आईसीएल को वैसा माइलेज नहीं मिल पाया, जिसकी उम्‍मीद थी। बीसीसीआई ने अपने किसी भी टूर्नामेंट या मैच में आईसीएल से जुड़े खिलाडि़यों के खेलने पर पाबंदी लगा दी, जो आज तक कायम है।

बीसीसीआई के कटुतापूर्ण रवैये की वजह से आईसीएल को खासा नुकसान झेलना पड़ा। आईसीएल उस नुकसान से उबरने की जी-जान से कोशिश कर रहा है। हालांकि, आईसीएल की शुरुआत आईपीएल से पहले हो गई थी और क्रिकेट के लिहाज से आईसीएल का स्‍तर आईपीएल से कमतर नहीं था। लेकिन, गलैमर और मार्केटिंग में वह पिछड़ गया क्‍योंकि उसके पास सचिन, धोनी, सहवाग, जयसूर्या, युवराज, गिलक्रिस्‍ट, वार्न, गांगुली, द्रविड़ सायमंड्स जैसे बड़े खिलाड़ी और अंबानी, विजय माल्‍या, शाहरुख खान, प्रीटि जिंटा जैसे उद्योगपति और स्‍टार नहीं थे। इस वजह से इसकी चमक फीकी पड़ गई। यहां तक की इससे जुड़े खिलाडि़यों को बीसीसीआई ने बागी तक करार दे दिया। इतना ही नहीं, अपने प्रभाव के दम पर उसने दूसरे देशों के बोर्डों को भी आईसीएल से जुड़े क्रिकेटरों पर कार्रवाई करने को मजबूर कर दिया।

खैर, श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड के अध्‍यक्ष अर्जुन रणतुंगा ने साहस भरा कदम उठाते हुए आईसीएल से जुड़े अपने देश के खिलाडि़यों को घरेलू सीरीजों में खेलने की अनुमति दे दी है। इन खिलाडि़यों में श्रीलंका के पूर्व कप्‍तान मर्वन अटापट्टू ऑलराउंडर रसेल अर्नोल्‍ड और लेग स्पिनर उपुल चंदना जैसे खिलाड़ी शामिल हैं। ये खिलाड़ी आईसीएल की विभिन्‍न टीमों से जुड़े हैं। श्रीलंका के कप्‍तान रहे बेहतरीन टेस्‍ट प्‍लेयर 37 वर्षीय मर्वन अटापट्टू ने तो श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड के इस फैसले को साहासिक फैसला करार देते हुए कहा है कि अन्‍य क्रिकेट बोर्डो को भी इस बात पर विचार-विमर्श कर सकारात्‍मक सोच अपनानी चाहिए। इससे क्रिकेट का भला होगा।

दूसरी तरफ आईसीएल ने भी इसे क्रिकेट की जीत बताया और कहा कि उसे अब आईसीसी से भी सकारात्‍मक जवाब की उम्‍मीद है। वहीं आईसीएल कार्यकारी बोर्ड के सदस्‍य किरण मोरे ने इसे आईसीएल ही नहीं, बल्कि क्रिकेट के लिए एक अहम दिन करार दिया। उनका मानना है कि हम सब भी क्रिकेट ही खेल रहे हैं, कोई गलत काम नहीं कर रहे हैं। मोरे का यह मानना भी गलत नहीं है कि पहले खिलाड़ी काउंटी में खेलने के लिए जाते थे, अब वे आईसीएल या आईपीएल का रूख कर रहे हैं तो इसमें बुरा क्‍या है।

श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड ने आईसीएल को जो खुशी दी है, वह कब तक कायम रहती है, यह आने वाला वक्‍त बताएगा। लेकिन, श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड ने अपने इस फैसले के जरिए बीसीसीआई को साफ तौर पर बता दिया है कि आईसीएल से जुड़े क्रिकेटरों को वह क्रिकेटर ही मानता है, ‘अछूत’ नहीं। बीसीसीआई को श्रीलंका बोर्ड के इस फैसले को सकारात्‍मक रूप में लेते हुए अपने रवैये पर विचार करना चाहिए। इससे क्रिकेट का भला ही होगा।

Friday, September 19, 2008

कायम है सहवाग का खौफ


मोहम्‍मद निसार ट्राफी मैच के तीसरे दिन जिस अक्रामक अंदाज में बल्‍लेबाजी की, वह लाजबाब थी। इस छोटी, लेकिन आक्रामक पारी ने पाकिस्‍तानी खिलाडि़यों की पेशानी पर बल ला दिया था। जब तक सहवाग क्रीज पर थे उनके खौफ को विपक्षी खिलाडि़यों के चेहरों पर साफ पढ़ा जा सकता था।

मुकेश तिवारी
रणजी चैंपियन दिल्‍ली और कायदे आजम ट्रॉफी की विजेता सूई नार्दन गैस पाइपलाइन लिमिटेड के बीच हो रहे मोहम्‍मद निसार ट्राफी के चार दिवसीय मैच की पहली पारी में सहवाग बिना खाता खोले ऑउट हो गये थे। तब उनका महत्‍वपूर्ण विकेट लेने वाले इमरान अली ने कहा था कि मै सहवाग को भी अन्‍य सामान्‍य बल्‍लेबाजों की तरह ही मानता हूं। यह बात शायद सहवाग नामक आग को हवा देने के लिए काफी थी। सहवाग ने दूसरी पारी में 29 गेंदो पर ताबड़तोड़ 37 रन बना डाले जिनमें 6 दनदनाते चौके और एक लाजबाब छक्‍का शामिल था। उन्‍होंने इमरान (वही जो सहवाग को एक आम बल्‍लेबाज बता रहे थे) के एक ओवर मे 3 चौकों की मदद से 15 रन ठोक डाले। तब इमरान को ही नहीं, बल्कि पाकिस्‍तानी टीम को भी यह अहसास हो गया हो गया कि वे एक आम बल्‍लेबाज नहीं हैं। अवार्ड समारोह के दौरान पा‍किस्‍तान टीम के मैनेजर शहादत अली खान की टिप्‍पणी- सहवाग दुनिया के सबसे खतरनाक बल्‍लेबाज हैं- से यह जाहिर भी हो गया।

सहवाग हमेशा से किसी भी गेंदबाज के लिए सबसे बड़ी चुनौती रहे हैं। सामने कोई भी गेंदबाज हो, सहवाग को कोई फर्क नहीं पड़ता, बस वे अपना नेचुरल गेम खेलते हैं, यानी गेंदबाज की कुटाई। शायद इसी लिए उन्‍हें ‘बेखौफ बल्‍लेबाज’ के नाम से पुकारा जाता है। इसका ताजातरीन उदाहरण श्रीलंका में देखने को मिला। अंजता मेंडिस दूसरे भारतीय बल्‍लेबाजों के लिए अबूझ पहेली बने रहे, वहीं सहवाग ने मेंडिस के खिलाफ अक्रामक नीति अख्तियार की और सफल भी हुए। मेंडिस को यह मानना पड़ा कि भारतीय बल्‍लेबाजों में सहवाग को गेंदबाजी करना सबसे ज्‍यादा मुश्किल था। इस बेजोड़ बल्‍लेबाज ने अपने पिछले 11 टेस्‍ट शतकों में 150 के ऊपर रन बनाये हैं, जो अपने-आप में एक रिकार्ड है।

खास कर पाकिस्‍तान के खिलाफ तो सहवाग का बल्‍ला बल्‍ला हमेशा बोला है। मुल्‍तान में पाकिस्‍तान के खिलाफ भारत की तरफ से पहला तिहरा शतक लगाकर सहवाग ने पाकिस्‍तानी खिलाडि़यों को अपने इस बेखौफ बल्‍लेबाजी का नमूना पहले ही दिखा दिया था। निसार ट्रॉफी की दूसरी पारी में सहवाग के ताबड़तोड़ 37 रन शायद पाकिस्‍तानी खिलाडि़यों को पिछली पारियों के मंजर याद दिलाने के लिए थे।

Tuesday, September 16, 2008

श्रीलंका से निराश, अब ऑस्‍ट्रेलिया से है आस



76 रन और सचिन रमेश तेंदुलकर टेस्‍ट मैचों में रनों के मामले में शीर्ष पर काबिज हो जाएंगे। उम्‍मीद तो श्रीलंका के खिलाफ पिछली सीरीज में भी थी, लेकिन अब उनके निशाने पर ऑस्‍ट्रेलिया की विश्‍व चैंपियन टीम है।


मुकेश तिवारी


जी हां, शायद यही सोच रहे होंगे सचिन तेंदुलकर आजकल। श्रीलंका के खिलाफ पिछली टेस्‍ट सीरीज में तो उनका बल्‍ला कुछ ऐसा रूठा कि ब्रायन लारा के टेस्‍ट मैचों में सबसे ज्‍यादा रनों के रिकॉर्ड का पीछा करते वहां पहुंचे सचिन मन मसोस कर ही रह गए। लेकिन उम्‍मीदें अभी कायम हैं। वे जरूर यह सोच रहे होंगे कि अपने पसंदीदा टीम यानी ऑस्‍ट्रेलिया के खिलाफ उनकी बल्‍लेबाजी फिर से परवान चढेगी और लारा का रिकॉर्ड पहले पायदान से एक सीढी नीचे उतरकर दूसरे नंबर पर पहुंच जाएगा।

सचिन का यह सोचना शायद ला‍जिमी भी हो क्‍यों कि श्रीलंका में यह मास्‍टर अपने बल्‍ले से ब्‍लास्‍ट करने में पूरी तरह असफल रहा। इस बीच काफी कुछ गुजर गया। टेस्‍ट सीरीज हारने के बाद भारत की युवा वनडे टीम ने एकदिवसीय श्रृंखला जीत ली और टेस्‍ट टीम के दिग्‍गज खिलाडि़यों को कटघरे में खड़ा कर दिया। आलोचकों ने अनुभवी खिलाडि़यों पर निशाना साधा ओर सौरव गांगुली को शेष भारत की टीम से बाहर कर दिया गया। लेकिन सचिन तो आखिर सचिन हैं। उन्‍होंने अपने दो दशक लंबे अंतरराष्‍ट्रीय करियर में कभी भी आलोचनाओं का जवाब मुंह से नहीं दिया। सचिन जब भी बोलते हैं, तो उनका बल्‍ला बोलता है और आगामी ऑस्‍ट्रेलिया टेस्‍ट सीरीज में पिछली नाकामियों को भूलकर यह सितारा एक बार फिर अपनी चमक बिखेरने को जरूर उत्‍सुक होगा।

वैसे अगर देखा जाए तो ऑस्‍ट्रेलिया के खिलाफ सचिन का बल्‍ला खूब चला है। क्रिकेट के दोनों संस्‍करणों, टेस्‍ट व वनडे मैचों में सचिन ने दोनों टीमों की तरफ से सर्वाधिक रन ठोंके है। इस धाकड़ बल्‍लेबाज ने ऑस्‍ट्रेलिया के खिलाफ 25 टेस्‍ट मैचों की 47 पारियों में 5 बार नॉटआउट रहते हुए शानदार 2352 रन बनाए हैं। यही नहीं, इसमें सचिन का औसत भी 55 के ऊपर रहा है। टेस्‍ट क्रिकेट और वनडे क्रिकेट दोनों में मिलाकर सचिन ने ऑस्‍ट्रेलिया के खिलाफ 17 शतक जड़े हैं, और इस मामले में वह दुनिया के किसी अन्‍य खिलाड़ी से मीलों आगे हैं।

बुरा दौर किस खिलाड़ी ने नहीं देखा है। सचिन इसके अपवाद नहीं हैं, लेक‍ि‍न क्रिकेट के मैदान पर कभी भी हार न मानने वाला इस शख्‍स ने हमेशा बेहतरीन कमबैक किया है। इसका सबसे ताजातरीन उदाहरण ऑस्‍ट्रेलिया में ऑस्‍ट्रेलिया के खिलाफ ही देखने को मिला। भारत 2004 में ऑस्‍ट्रेलिया दौरे पर थी। ठीक ऐसे ही, उस समय भी सचिन का बल्‍ला उनसे रूठा हुआ था। ऑस्‍ट्रेलिया के खिलाफ 4 टेस्‍ट मैचों की सीरीज में शुरूआत के तीनों टेस्‍ट में सचिन अपनी टीम के लिए कुछ खास नहीं कर सके थे। क्रिकेट विशेषज्ञ तो यहां तक कहने लगे थे कि सचिन का करियर अब अपने ढलान पर है, रनों के लिए उनकी भूख अब मिट हो चुकी है।

सिडनी के खूबसूरत मैदान पर सीरीज का आखिरी टेस्‍ट मैच शुरू हो चुका था। एक और नाकामयाबी सचिन के पूरे क्रिकेट करियर पर सवाल खड़े कर सकता था। ले‍किन क्रिकेट के इस अमूल्‍य सितारे ने 241 रन की एक जीवट भरी पारी खेल दी। यही नहीं, उस टेस्‍ट में भारत ने ऑस्‍ट्रेलिया के खिलाफ टेस्‍ट मैचों में अपना सबसे बड़ा स्‍कोर भी बनाया। वो तो किस्‍मत भारतीय टीम के साथ नहीं थी, वरना हम मैच के साथ-साथ सीरीज भी अपने नाम कर वापस लौटे होते। लेकिन, तेंदुलकर की इस पारी ने ऑस्‍ट्रेलिया के बॉर्डर -गावस्‍कर ट्रॉफी को जीतने के सपने को चकनाचूर कर दिया और सीरीज 1-1 की बराबरी पर छूटी। इस सीरीज के बाद सचिन का बल्‍ला पाकिस्‍तान में भी अपने पूरे शबाब पर रहा और भारत ने पाकिस्‍तान को पाकिस्‍तान में ही हराकर सफलता की एक नई कहकहानी ‍अनी लिख दी।

सचिन इस समय भी बुरे दौर से तो नहीं ले‍किन खराब दौर से जरूर गुजर रहे हैं। क्रिकेट प्रशंसक तो यह दुआएं मांग रहे थे कि ब्रायन लारा का रिकार्ड सचिन श्रीलंका में ही तोड़ दें, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। फिलहाल एक बार फिर यह मौका सचिन के सामने है। ऑस्‍ट्रे‍लियाई टीम चार टेस्‍ट मैचों की सीरीज खेलने के‍ लिए भारत दौरे पर आ रही है। अगर सचिन इस सीरीज में पूरी तरह फिट होने के साथ अपनी लय में आ गए, तो लारा का रिकार्ड तो ध्‍वस्‍त होगा ही साथ में ऑस्‍ट्रेलिया को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है। ऑस्‍ट्रेलिया जब पिछली बार भारत दौरे पर आई थी, तो भारत को हार का सामना करना पड़ा था। सचिन के रिकॉर्ड के अलावा यदि भारत इस हार का बदला चुका लेता है, तो यह सोने पर सुहागा जैसा होगा। फिलहाल इस सीरीज में सचिन अपनी पूरी रंगत में खेलें, हम तो यही कामना करते हैं।

Sunday, September 14, 2008

कहीं यहां भी तो मिंट का कमाल नहीं था!


नेटवेस्‍ट सीरीज इंग्‍लैंड ने 4- 0 से जीत कर नये- नवेले कप्‍तान केविन पीटरसन को जो तोहफा दिया, वह काबिले तारीफ है। निश्चित तौर पर ये कामयाबी उन्‍हें सशक्‍त कप्‍तान बनाने में काफी सहायक सिद्ध होगी।

मुकेश तिवारी

अभी हाल ही में समाप्‍त हुए नेटवेस्‍ट सीरीज में इंग्‍लैंड ने दक्षिण अफ्रीका को बुरी तरह से पीटा। ये तो शुक्र है मौसम का, जिसने दक्षिण अफ्रीका के सीरिज में पूरी तरह सफाये यानी 5- 0 से सीरीज गवांने से बचा लिया। आखिरी मैच में मौसम के मार की वजह से सिर्फ 3 ओवर का ही खेल हो सका और इंग्‍लैंड का अपने घर में पहली बार पांच मैचों की सीरिज 5-0 से जीतने की तमन्‍ना असलियत में नहीं बदल पाई।

पहले मैच में कप्‍तान केविन पीटरसन के बेहतरीन 90 रन और ऑलराउंडर एंड्रयू फ्लिंटाफ के 70 गेंदों पर ठोंके गए 78 रनों ने इंग्‍लैंड टीम में ऐसा जोश पैदा किया कि अफ्रीका जैसी मजबूत टीम भी कमजोर दिखाई पड़ने लगी। दूसरे एकदिवसीय मैच में तो स्‍टुअर्ट ब्रॉड व फ्लिंटाफ ने आउट स्‍विंग, रिवर्स स्विंग और इन स्विंग की ऐसी कॉकटेल परोसी कि अफ्रीका की टीम महज 83 रनों पर ढेर हो गयी। दोनों ने मिलकर अफ्रीका के 8 खिलाडि़यों को आउट किया। बहरहाल, नेटवेस्‍ट सीरीज इंग्‍लैंड ने 4- 0 से जीत कर नये-नवेले कप्‍तान केविन पीटरसन को जो तोहफा दिया, वह काबिले तारीफ है। निश्चित तौर पर ये कामयाबी उन्‍हें सशक्‍त कप्‍तान बनाने में काफी सहायक सिद्ध होगी।

लेकिन इंगलैंड टीम की यह आशातीत सफलता जाने क्‍यों दिलों में कहीं संदेह भी पैदा करती है। दिल मानने को राजी तो नहीं होता, लेकिन कई बार ऐसा लगता है कि इस खुशी का राज कहीं एक बार फिर मिंट या ऐसी ही कोई चीज तो नहीं है। गौरतलब है कि इंग्‍लैंड ने 2003 में 18 साल बाद एशेज में ऑस्‍ट्रेलिया को हराकर पहली बार उसके बादशाहत को चुनौती दी थी। और उस समय पूरे इंग्‍लैंड में इस जीत की खुशी का मंजर देखने लायक था।

लेकिन, इस खुशी के करीब पांच साल बाद उस टीम का हिस्‍सा रहे बायें हाथ के ओपनिंग बल्‍लेबाज मार्कस ट्रेस्‍कोथिक ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में यह माना कि गेंद की चमक बरकरार रखने के लिए मिंट की एक विशेष ब्रांड मुरे मिंट्स का प्रयोग किया गया था। ट्रेस्‍को‍थिक ने यह भी माना है कि 2001 की एशेज श्रृंखला के दौरान भी इंग्‍लैंड टीम ने ऐसा प्रयास किया था, लेकिन उन्‍हें सफलता नसीब नहीं हुई थी।

ट्रेस्‍कोथिक के बयानों की टाइमिंग लोगों के दिलों में संदेह पैदा करने का सबसे बड़ा कारण है। उन्‍होंने यह बयान तब दिया, जब इंग्‍लैंड और दक्षिण अफ्रीका के बीच यह सीरिज चल रही थी और इंग्‍लैंड एक के बाद एक मैच जीतकर सीरिज जीतने के कगार पर था। गौरतलब है कि दक्षिण अफ्रीका की हार में तीन खिलाडि़यों का महत्‍वपूर्ण योगदान रहा है- फ्लिंटॉफ, पीटरसन और रिटायरमेंट से वापस लौटे स्‍टीव हार्मिसन। आश्‍चर्य की बात तो यह है कि ये तीनों ही खिलाड़ी इंग्‍लैंड की एशेज विजय के भी नायक रहे थे। फ्रेडी ने उस श्रृंखला में खेल के हर क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन किया था और सीरीज के सर्वश्रेष्‍ठ खिलाड़ी बने थे। और दक्षिण अफ्रीका के विरूद्ध इस सीरिज में भी फ्लिंटॉफ ही सर्वश्रेष्‍ठ रहे।

जाहिर सी बात है कि स्विंग के लिए गेंद की चमक लगातार बरकरार रखने की जरूरत होती है और इसके लिए मुरे मिंट्स से बेहतर और कुछ नही हो सकता। इस बात को फ्लिंटॉफ से बेहतर और कौन समझ सकता है। हालांकि इस बात को प्रमाणित करना जरा मुश्किल है (बशर्ते टीम में शामिल कोई खिलाड़ी ही कुछ सालों बाद इसकी पुष्टि न कर दे), लेकिन लोगों के दिलों की उभार को रोकना तो नामुमकिन ही है।

हालांकि, इस जीत का दूसरा पक्ष ऐसी किसी संभावना की गवाही नहीं देता। टेस्‍ट सीरिज जीतने के बाद दक्षिण अफ्रीकी टीम का अचानक 'आउट ऑफ फॉर्म' होने में भला इंग्‍लैंड के खिलाडि़यों का क्‍या हाथ हो सकता है। और देखा जाए तो इंग्‍लैंड ने एक टीम के रूप में बेहतरीन खेल दिखाया, जबकि दक्षिण अफ्रीका एक टीम के रूप में फिसड्डी साबित हुई। फिर बल्‍ले के साथ जैक कॉलिस का खराब फॉर्म पूरी सीरिज में टीम के लिए नासूर बना रहा। इसमें कोई शक नहीं कि फ्लिंटाफ एक बे‍हतरीन खिलाड़ी हैं। खेल के मैदान पर वे अपनी पूरी क्षमता के साथ खेलते हैं। लेकिन, टीम को जीताने के लिए कुछ अतिरिक्‍त प्रयास तो करने ही पड़ते हैं न! हो सकता है पूरी टीम का ये अतिरिक्‍त प्रयास ही रहा हो?

सफलता को सलाम!

धोनी और युवराज को आईसीसी से मिले ये अवार्ड भारतीय क्रिकेट के बदलते तस्‍वीर की कहानी कहते हैं। भारतीय क्रिकेट के समर्थकों के लिए यह एक खुशनुमा अहसास है, लेकिन यह युवा खिलाडि़यों की इस नई फौज के लिए एक नई चुनौती भी है।

मुकेश तिवारी

भारतीय वनडे व टी-ट्वेंटी टीम के कप्‍तान महेंद्र सिंह धोनी इस समय अपने करियर के स्‍वर्णिम दौर से गुजर रहे हैं। उनके इस छोटे लेकिन सफल करियर में एक नया अध्‍याय तब जुड गया, जब दुबई में अपने वार्षिक पुरस्‍कारों की घोषणा करते हुए आईसीसी साल 2008 के लिए ने धोनी को बेस्‍ट वनडे प्‍लेयर ऑफ द ईयर के खिताब से नवाजा। धोनी को यह अवार्ड अपने ही हमवतन मास्‍टर ब्‍लास्‍टर सचिन तेंदुलकर, ऑस्‍ट्रेलिया के नाथन ब्रेकन व पाकिस्‍तान के मोहम्‍मद यूसुफ को मात देकर मिला।

धोनी के अलावा टी-ट्वेंटी विश्‍व कप में शानदार प्रदर्शन करने वाले युवराज सिंह को बेस्‍ट टी-ट्वेंटी प्‍लेयर ऑफ द ईयर का अवार्ड दिया गया। इस पुरस्‍कार के लिए युवराज का मुकाबला साथी खिलाड़ी धोनी के अलावा वेस्‍टइंडीज के क्रिस गेल, और ऑस्‍ट्रेलिया के स्‍पीड स्‍टार ब्रेट ली से था। लेकिन बाजी मारी बायें हाथ के स्‍टाइलिश युवराज नें।ये अवार्ड इन दोनों खिलाडि़यों की श्रेष्‍ठता और टैलेंट को बयां करता है। धोनी की कप्‍तानी में भारतीय टीम वनडे में बेहतरीन प्रदर्शन कर रही है। ऑस्‍ट्रेलिया और श्रीलंका जैसी टीम को उनके घर में ही हराना धोनी के कप्‍तानी की काबिलियत को बयां करता है। केवल कप्‍तान ही नहीं, एक बल्‍लेबाज और विकेटकीपर के रूप में भी माही का प्रदर्शन लाजवाब रहा है। पिछले सीजन में टीम के संकटमोचक के रूप में उन्‍होंने कई मैचों में अपने बूते भारत को जीत दिलाई है। आईसीसी के पिछले एक साल के कैलेंडर में धोनी ने 39 वनडे मैच खेलकर 49। 22 की औसत से 1298 रन बनायें।

यही नहीं अपने बेहतरीन खेल के जरिये धोनी वनडे की ताजा आईसीसी रैंकिंग में भी पहले स्‍थान पर काबिज है। इस तरह से देखा जाय तो वाकई धोनी इस अवार्ड के हकदार थे। इस अवार्ड की अहमियत धोनी के लिए इसलिए भी खास है क्‍योंकि इस अवार्ड को हासिल करने के लिए उन्‍हें अपनी ही टीम के धुरंधर बल्‍लेबाज सचिन को मात देना था। और इसमें वे सफल रहे। इसके अतिरिक्‍त वे पहले ऐसे भारतीय बल्‍लेबाज भी बन गये हैं, जिसे यह उपलब्धि हासिल हुई है।युवराज सिंह की सफलता भी अपने आप में अतुलनीय है। हो भी क्‍यों न ,फटाफट क्रिकेट यानी टी-ट्वेंटी में आईसीसी ने उन्‍हें साल के सर्वश्रेष्‍ठ खिलाड़ी के अवार्ड के काबिल समझा है। इस स्‍टाइलिश लेफ्ट हैंडर का बल्‍ला अभी भले रूठा हो, लेकिन पहले 20-20 वर्ल्‍ड कप में भारतीय टीम के चैंपियन बनने के सफर में युवराज की भूमिका सबसे महत्‍वपूर्ण रही थी। दक्षिण अफ्रीका में सम्‍पन्‍न इस टूर्नामेंट में इंग्‍लैंड के स्‍टुअर्ट ब्राड के छह गेंदों पर छह छक्‍के लगाने का उनका कारनामा तो हमेशा के लिए रिकॉर्ड बुक में दर्ज हो चुका है। और तो और युवराज के उन छ: छक्‍को ने ऑस्‍ट्रेलिया के सबसे सफलतम अंपायर साइमन टफेल के मन को भी मोह लिया। आईसीसी से 2008 का सर्वश्रेष्‍ठ अंपायर का अवार्ड लेने के बाद टफेल ने कहा कि नॉन स्‍ट्राइकिंग एंड पर खड़े होकर युवराज के छक्‍कों को देखना एक यादगार लम्‍हा था। शायद इतना ही उन्‍हें इस अवार्ड को हासिल करने के लिए काफी था। आईसीसी पुरस्‍कारों के इस होड़ में भारतीय टीम से चार खिलाडि़यों को नॉमिनेंट किया गया था, जिसमें एक नाम उभरते तेंज गेंदबाज ईशांत शर्मा का भी था। लेकिन उन्‍हें श्रीलंका के चमत्‍कारिक स्पिनर अजंता मेंडिस ने पीछे कर उभरता खिलाड़ी का अवॉर्ड जीत लिया। मेंडिस ने जुलाई अगस्‍त में भारत के खिलाफ 3 टेस्‍ट मैचों की सीरीज में 18.38 के बेहतरीन इकोनॉमी रेट से 26 विकेट लेकर इस अवॉर्ड पर पहले ही अपना नाम दर्ज करा दिया था।वैसे देखा जाय तो ये अवॉर्ड बदलते समय की तस्‍वीर भी पेश करते हैं। ज्‍यादा दिन नहीं हुए जब ऐसे अवार्ड्स की चर्चा होते ही जेहन में सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली जैसे भारतीय खिलाडि़यों का नाम उभर आता था। लेकिन आज लगता है जैसे धोनी व युवराज जैसे युवाओं ने महान खिलाडि़यों की इस परंपरा को आगे ले जाने की जिम्‍मेदारी अपने कंधों पर ले ली है। भारतीय क्रिकेट के समर्थकों के लिए यह एक खुशनुमा अहसास है। लेकिन यह युवा खिलाडि़यों की इस नई फौज के लिए एक नई चुनौती भी है।