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Sunday, September 14, 2008

सफलता को सलाम!

धोनी और युवराज को आईसीसी से मिले ये अवार्ड भारतीय क्रिकेट के बदलते तस्‍वीर की कहानी कहते हैं। भारतीय क्रिकेट के समर्थकों के लिए यह एक खुशनुमा अहसास है, लेकिन यह युवा खिलाडि़यों की इस नई फौज के लिए एक नई चुनौती भी है।

मुकेश तिवारी

भारतीय वनडे व टी-ट्वेंटी टीम के कप्‍तान महेंद्र सिंह धोनी इस समय अपने करियर के स्‍वर्णिम दौर से गुजर रहे हैं। उनके इस छोटे लेकिन सफल करियर में एक नया अध्‍याय तब जुड गया, जब दुबई में अपने वार्षिक पुरस्‍कारों की घोषणा करते हुए आईसीसी साल 2008 के लिए ने धोनी को बेस्‍ट वनडे प्‍लेयर ऑफ द ईयर के खिताब से नवाजा। धोनी को यह अवार्ड अपने ही हमवतन मास्‍टर ब्‍लास्‍टर सचिन तेंदुलकर, ऑस्‍ट्रेलिया के नाथन ब्रेकन व पाकिस्‍तान के मोहम्‍मद यूसुफ को मात देकर मिला।

धोनी के अलावा टी-ट्वेंटी विश्‍व कप में शानदार प्रदर्शन करने वाले युवराज सिंह को बेस्‍ट टी-ट्वेंटी प्‍लेयर ऑफ द ईयर का अवार्ड दिया गया। इस पुरस्‍कार के लिए युवराज का मुकाबला साथी खिलाड़ी धोनी के अलावा वेस्‍टइंडीज के क्रिस गेल, और ऑस्‍ट्रेलिया के स्‍पीड स्‍टार ब्रेट ली से था। लेकिन बाजी मारी बायें हाथ के स्‍टाइलिश युवराज नें।ये अवार्ड इन दोनों खिलाडि़यों की श्रेष्‍ठता और टैलेंट को बयां करता है। धोनी की कप्‍तानी में भारतीय टीम वनडे में बेहतरीन प्रदर्शन कर रही है। ऑस्‍ट्रेलिया और श्रीलंका जैसी टीम को उनके घर में ही हराना धोनी के कप्‍तानी की काबिलियत को बयां करता है। केवल कप्‍तान ही नहीं, एक बल्‍लेबाज और विकेटकीपर के रूप में भी माही का प्रदर्शन लाजवाब रहा है। पिछले सीजन में टीम के संकटमोचक के रूप में उन्‍होंने कई मैचों में अपने बूते भारत को जीत दिलाई है। आईसीसी के पिछले एक साल के कैलेंडर में धोनी ने 39 वनडे मैच खेलकर 49। 22 की औसत से 1298 रन बनायें।

यही नहीं अपने बेहतरीन खेल के जरिये धोनी वनडे की ताजा आईसीसी रैंकिंग में भी पहले स्‍थान पर काबिज है। इस तरह से देखा जाय तो वाकई धोनी इस अवार्ड के हकदार थे। इस अवार्ड की अहमियत धोनी के लिए इसलिए भी खास है क्‍योंकि इस अवार्ड को हासिल करने के लिए उन्‍हें अपनी ही टीम के धुरंधर बल्‍लेबाज सचिन को मात देना था। और इसमें वे सफल रहे। इसके अतिरिक्‍त वे पहले ऐसे भारतीय बल्‍लेबाज भी बन गये हैं, जिसे यह उपलब्धि हासिल हुई है।युवराज सिंह की सफलता भी अपने आप में अतुलनीय है। हो भी क्‍यों न ,फटाफट क्रिकेट यानी टी-ट्वेंटी में आईसीसी ने उन्‍हें साल के सर्वश्रेष्‍ठ खिलाड़ी के अवार्ड के काबिल समझा है। इस स्‍टाइलिश लेफ्ट हैंडर का बल्‍ला अभी भले रूठा हो, लेकिन पहले 20-20 वर्ल्‍ड कप में भारतीय टीम के चैंपियन बनने के सफर में युवराज की भूमिका सबसे महत्‍वपूर्ण रही थी। दक्षिण अफ्रीका में सम्‍पन्‍न इस टूर्नामेंट में इंग्‍लैंड के स्‍टुअर्ट ब्राड के छह गेंदों पर छह छक्‍के लगाने का उनका कारनामा तो हमेशा के लिए रिकॉर्ड बुक में दर्ज हो चुका है। और तो और युवराज के उन छ: छक्‍को ने ऑस्‍ट्रेलिया के सबसे सफलतम अंपायर साइमन टफेल के मन को भी मोह लिया। आईसीसी से 2008 का सर्वश्रेष्‍ठ अंपायर का अवार्ड लेने के बाद टफेल ने कहा कि नॉन स्‍ट्राइकिंग एंड पर खड़े होकर युवराज के छक्‍कों को देखना एक यादगार लम्‍हा था। शायद इतना ही उन्‍हें इस अवार्ड को हासिल करने के लिए काफी था। आईसीसी पुरस्‍कारों के इस होड़ में भारतीय टीम से चार खिलाडि़यों को नॉमिनेंट किया गया था, जिसमें एक नाम उभरते तेंज गेंदबाज ईशांत शर्मा का भी था। लेकिन उन्‍हें श्रीलंका के चमत्‍कारिक स्पिनर अजंता मेंडिस ने पीछे कर उभरता खिलाड़ी का अवॉर्ड जीत लिया। मेंडिस ने जुलाई अगस्‍त में भारत के खिलाफ 3 टेस्‍ट मैचों की सीरीज में 18.38 के बेहतरीन इकोनॉमी रेट से 26 विकेट लेकर इस अवॉर्ड पर पहले ही अपना नाम दर्ज करा दिया था।वैसे देखा जाय तो ये अवॉर्ड बदलते समय की तस्‍वीर भी पेश करते हैं। ज्‍यादा दिन नहीं हुए जब ऐसे अवार्ड्स की चर्चा होते ही जेहन में सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली जैसे भारतीय खिलाडि़यों का नाम उभर आता था। लेकिन आज लगता है जैसे धोनी व युवराज जैसे युवाओं ने महान खिलाडि़यों की इस परंपरा को आगे ले जाने की जिम्‍मेदारी अपने कंधों पर ले ली है। भारतीय क्रिकेट के समर्थकों के लिए यह एक खुशनुमा अहसास है। लेकिन यह युवा खिलाडि़यों की इस नई फौज के लिए एक नई चुनौती भी है।

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