नेटवेस्ट सीरीज इंग्लैंड ने 4- 0 से जीत कर नये- नवेले कप्तान केविन पीटरसन को जो तोहफा दिया, वह काबिले तारीफ है। निश्चित तौर पर ये कामयाबी उन्हें सशक्त कप्तान बनाने में काफी सहायक सिद्ध होगी।
मुकेश तिवारी
अभी हाल ही में समाप्त हुए नेटवेस्ट सीरीज में इंग्लैंड ने दक्षिण अफ्रीका को बुरी तरह से पीटा। ये तो शुक्र है मौसम का, जिसने दक्षिण अफ्रीका के सीरिज में पूरी तरह सफाये यानी 5- 0 से सीरीज गवांने से बचा लिया। आखिरी मैच में मौसम के मार की वजह से सिर्फ 3 ओवर का ही खेल हो सका और इंग्लैंड का अपने घर में पहली बार पांच मैचों की सीरिज 5-0 से जीतने की तमन्ना असलियत में नहीं बदल पाई।
पहले मैच में कप्तान केविन पीटरसन के बेहतरीन 90 रन और ऑलराउंडर एंड्रयू फ्लिंटाफ के 70 गेंदों पर ठोंके गए 78 रनों ने इंग्लैंड टीम में ऐसा जोश पैदा किया कि अफ्रीका जैसी मजबूत टीम भी कमजोर दिखाई पड़ने लगी। दूसरे एकदिवसीय मैच में तो स्टुअर्ट ब्रॉड व फ्लिंटाफ ने आउट स्विंग, रिवर्स स्विंग और इन स्विंग की ऐसी कॉकटेल परोसी कि अफ्रीका की टीम महज 83 रनों पर ढेर हो गयी। दोनों ने मिलकर अफ्रीका के 8 खिलाडि़यों को आउट किया। बहरहाल, नेटवेस्ट सीरीज इंग्लैंड ने 4- 0 से जीत कर नये-नवेले कप्तान केविन पीटरसन को जो तोहफा दिया, वह काबिले तारीफ है। निश्चित तौर पर ये कामयाबी उन्हें सशक्त कप्तान बनाने में काफी सहायक सिद्ध होगी।
लेकिन इंगलैंड टीम की यह आशातीत सफलता जाने क्यों दिलों में कहीं संदेह भी पैदा करती है। दिल मानने को राजी तो नहीं होता, लेकिन कई बार ऐसा लगता है कि इस खुशी का राज कहीं एक बार फिर मिंट या ऐसी ही कोई चीज तो नहीं है। गौरतलब है कि इंग्लैंड ने 2003 में 18 साल बाद एशेज में ऑस्ट्रेलिया को हराकर पहली बार उसके बादशाहत को चुनौती दी थी। और उस समय पूरे इंग्लैंड में इस जीत की खुशी का मंजर देखने लायक था।
लेकिन, इस खुशी के करीब पांच साल बाद उस टीम का हिस्सा रहे बायें हाथ के ओपनिंग बल्लेबाज मार्कस ट्रेस्कोथिक ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में यह माना कि गेंद की चमक बरकरार रखने के लिए मिंट की एक विशेष ब्रांड मुरे मिंट्स का प्रयोग किया गया था। ट्रेस्कोथिक ने यह भी माना है कि 2001 की एशेज श्रृंखला के दौरान भी इंग्लैंड टीम ने ऐसा प्रयास किया था, लेकिन उन्हें सफलता नसीब नहीं हुई थी।
ट्रेस्कोथिक के बयानों की टाइमिंग लोगों के दिलों में संदेह पैदा करने का सबसे बड़ा कारण है। उन्होंने यह बयान तब दिया, जब इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका के बीच यह सीरिज चल रही थी और इंग्लैंड एक के बाद एक मैच जीतकर सीरिज जीतने के कगार पर था। गौरतलब है कि दक्षिण अफ्रीका की हार में तीन खिलाडि़यों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है- फ्लिंटॉफ, पीटरसन और रिटायरमेंट से वापस लौटे स्टीव हार्मिसन। आश्चर्य की बात तो यह है कि ये तीनों ही खिलाड़ी इंग्लैंड की एशेज विजय के भी नायक रहे थे। फ्रेडी ने उस श्रृंखला में खेल के हर क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन किया था और सीरीज के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बने थे। और दक्षिण अफ्रीका के विरूद्ध इस सीरिज में भी फ्लिंटॉफ ही सर्वश्रेष्ठ रहे।
जाहिर सी बात है कि स्विंग के लिए गेंद की चमक लगातार बरकरार रखने की जरूरत होती है और इसके लिए मुरे मिंट्स से बेहतर और कुछ नही हो सकता। इस बात को फ्लिंटॉफ से बेहतर और कौन समझ सकता है। हालांकि इस बात को प्रमाणित करना जरा मुश्किल है (बशर्ते टीम में शामिल कोई खिलाड़ी ही कुछ सालों बाद इसकी पुष्टि न कर दे), लेकिन लोगों के दिलों की उभार को रोकना तो नामुमकिन ही है।
हालांकि, इस जीत का दूसरा पक्ष ऐसी किसी संभावना की गवाही नहीं देता। टेस्ट सीरिज जीतने के बाद दक्षिण अफ्रीकी टीम का अचानक 'आउट ऑफ फॉर्म' होने में भला इंग्लैंड के खिलाडि़यों का क्या हाथ हो सकता है। और देखा जाए तो इंग्लैंड ने एक टीम के रूप में बेहतरीन खेल दिखाया, जबकि दक्षिण अफ्रीका एक टीम के रूप में फिसड्डी साबित हुई। फिर बल्ले के साथ जैक कॉलिस का खराब फॉर्म पूरी सीरिज में टीम के लिए नासूर बना रहा। इसमें कोई शक नहीं कि फ्लिंटाफ एक बेहतरीन खिलाड़ी हैं। खेल के मैदान पर वे अपनी पूरी क्षमता के साथ खेलते हैं। लेकिन, टीम को जीताने के लिए कुछ अतिरिक्त प्रयास तो करने ही पड़ते हैं न! हो सकता है पूरी टीम का ये अतिरिक्त प्रयास ही रहा हो?
मुकेश तिवारी
अभी हाल ही में समाप्त हुए नेटवेस्ट सीरीज में इंग्लैंड ने दक्षिण अफ्रीका को बुरी तरह से पीटा। ये तो शुक्र है मौसम का, जिसने दक्षिण अफ्रीका के सीरिज में पूरी तरह सफाये यानी 5- 0 से सीरीज गवांने से बचा लिया। आखिरी मैच में मौसम के मार की वजह से सिर्फ 3 ओवर का ही खेल हो सका और इंग्लैंड का अपने घर में पहली बार पांच मैचों की सीरिज 5-0 से जीतने की तमन्ना असलियत में नहीं बदल पाई।
पहले मैच में कप्तान केविन पीटरसन के बेहतरीन 90 रन और ऑलराउंडर एंड्रयू फ्लिंटाफ के 70 गेंदों पर ठोंके गए 78 रनों ने इंग्लैंड टीम में ऐसा जोश पैदा किया कि अफ्रीका जैसी मजबूत टीम भी कमजोर दिखाई पड़ने लगी। दूसरे एकदिवसीय मैच में तो स्टुअर्ट ब्रॉड व फ्लिंटाफ ने आउट स्विंग, रिवर्स स्विंग और इन स्विंग की ऐसी कॉकटेल परोसी कि अफ्रीका की टीम महज 83 रनों पर ढेर हो गयी। दोनों ने मिलकर अफ्रीका के 8 खिलाडि़यों को आउट किया। बहरहाल, नेटवेस्ट सीरीज इंग्लैंड ने 4- 0 से जीत कर नये-नवेले कप्तान केविन पीटरसन को जो तोहफा दिया, वह काबिले तारीफ है। निश्चित तौर पर ये कामयाबी उन्हें सशक्त कप्तान बनाने में काफी सहायक सिद्ध होगी।
लेकिन इंगलैंड टीम की यह आशातीत सफलता जाने क्यों दिलों में कहीं संदेह भी पैदा करती है। दिल मानने को राजी तो नहीं होता, लेकिन कई बार ऐसा लगता है कि इस खुशी का राज कहीं एक बार फिर मिंट या ऐसी ही कोई चीज तो नहीं है। गौरतलब है कि इंग्लैंड ने 2003 में 18 साल बाद एशेज में ऑस्ट्रेलिया को हराकर पहली बार उसके बादशाहत को चुनौती दी थी। और उस समय पूरे इंग्लैंड में इस जीत की खुशी का मंजर देखने लायक था।
लेकिन, इस खुशी के करीब पांच साल बाद उस टीम का हिस्सा रहे बायें हाथ के ओपनिंग बल्लेबाज मार्कस ट्रेस्कोथिक ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में यह माना कि गेंद की चमक बरकरार रखने के लिए मिंट की एक विशेष ब्रांड मुरे मिंट्स का प्रयोग किया गया था। ट्रेस्कोथिक ने यह भी माना है कि 2001 की एशेज श्रृंखला के दौरान भी इंग्लैंड टीम ने ऐसा प्रयास किया था, लेकिन उन्हें सफलता नसीब नहीं हुई थी।
ट्रेस्कोथिक के बयानों की टाइमिंग लोगों के दिलों में संदेह पैदा करने का सबसे बड़ा कारण है। उन्होंने यह बयान तब दिया, जब इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका के बीच यह सीरिज चल रही थी और इंग्लैंड एक के बाद एक मैच जीतकर सीरिज जीतने के कगार पर था। गौरतलब है कि दक्षिण अफ्रीका की हार में तीन खिलाडि़यों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है- फ्लिंटॉफ, पीटरसन और रिटायरमेंट से वापस लौटे स्टीव हार्मिसन। आश्चर्य की बात तो यह है कि ये तीनों ही खिलाड़ी इंग्लैंड की एशेज विजय के भी नायक रहे थे। फ्रेडी ने उस श्रृंखला में खेल के हर क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन किया था और सीरीज के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बने थे। और दक्षिण अफ्रीका के विरूद्ध इस सीरिज में भी फ्लिंटॉफ ही सर्वश्रेष्ठ रहे।
जाहिर सी बात है कि स्विंग के लिए गेंद की चमक लगातार बरकरार रखने की जरूरत होती है और इसके लिए मुरे मिंट्स से बेहतर और कुछ नही हो सकता। इस बात को फ्लिंटॉफ से बेहतर और कौन समझ सकता है। हालांकि इस बात को प्रमाणित करना जरा मुश्किल है (बशर्ते टीम में शामिल कोई खिलाड़ी ही कुछ सालों बाद इसकी पुष्टि न कर दे), लेकिन लोगों के दिलों की उभार को रोकना तो नामुमकिन ही है।
हालांकि, इस जीत का दूसरा पक्ष ऐसी किसी संभावना की गवाही नहीं देता। टेस्ट सीरिज जीतने के बाद दक्षिण अफ्रीकी टीम का अचानक 'आउट ऑफ फॉर्म' होने में भला इंग्लैंड के खिलाडि़यों का क्या हाथ हो सकता है। और देखा जाए तो इंग्लैंड ने एक टीम के रूप में बेहतरीन खेल दिखाया, जबकि दक्षिण अफ्रीका एक टीम के रूप में फिसड्डी साबित हुई। फिर बल्ले के साथ जैक कॉलिस का खराब फॉर्म पूरी सीरिज में टीम के लिए नासूर बना रहा। इसमें कोई शक नहीं कि फ्लिंटाफ एक बेहतरीन खिलाड़ी हैं। खेल के मैदान पर वे अपनी पूरी क्षमता के साथ खेलते हैं। लेकिन, टीम को जीताने के लिए कुछ अतिरिक्त प्रयास तो करने ही पड़ते हैं न! हो सकता है पूरी टीम का ये अतिरिक्त प्रयास ही रहा हो?
10 comments:
very good tiwari ji. i like ur artical and i also agree with ur views.
मुकेश जी बहुत अच्छा लेख है क्रिकेट पर. और मैं तो पगलाया ही रहता हूँ ऐसे लेखों के लिए. उम्मीद है कि आप ऐसे लेखों को लिखते रहेंगे. यदि ब्लॉग सम्बन्धी किसी जानकारी की ज़रूरत हो तो आप मेरा ब्लॉग देखें.
आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं,
नए चिट्ठे का स्वागत है.
निरंतरता बनाए रखें.
खूब लिखें, अच्छा लिखें.
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.
वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.
खेलों में खास तौर पर क्रिकेट में मेरी रूचि नहीं तथापि आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है हमारे ब्लॉग पर भी पधारें
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.
सलाम-नमस्ते!
ब्लॉग की दुनिया में हार्दिक अभिनन्दन!
आपने अपनी व्याकुलता को समुचित तौर से व्यक्त करने का प्रयास किया hai.
अच्चा लगा, इधर आना.
फुर्सत मिले तो आ मेरे दिन-रात देख ले
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
http://hamzabaan.blogspot.com/
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/
आपके इस नए कदम का स्वागत है !
Peterson aur Flintoff dono hi bahut hi umda khiladi hai, England ki jeet bahut had tak in dono per nirbhar bhi rehti hai.
sawagat hai hindi chitthon ki duniya me
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